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करिया बादर
Panah, kavita कब तक रइहि करिया बादर दिन अंजोर के घलु आहि रे। मन ल तोर कमजोर झिन करबे, दुख के बादर ह छंटा जाहि रे।। कोनो नई बचाय एखर छांव ले, दुनिया ले भला आउ कहा लुकाहि रे।। करम ल जेसना करहि तेसना। फल घालु ल पाहि रे।। कब तक रइहि करिया बादर, दिन अंजोर के घलु आहि रे। मन ल तोर कमजोर झिन करबे, दुख के बादर ह छंटा जाहि रे।। उफरय झन कोनो पइसा , शरीर आउ ताकत म,। एक दिन जम्मो सिराहि रे।। करहि कमजोर के अत्याचार त, हिरदे के आशीष कहा पाहि रे,।। आउ होही पाप पुन्य के लेखा जोखा, हिसाब इन्हेच कराही रे।। कोंन देखे हे सरग नरग ल, इन्हें सरग आउ नरग बन जाहि रे।। सब बर बराबर परकृति के नियम माटी म सबो झन मिल जाहि रे।। कब तक रइहि करिया बादर, दिन अंजोर के घलु आहि रे।
झन भुलाहु ग....
झन भूलाहु ग, झन भुलाहु..... झन भूलाहु ग, झन भुलाहु..... कोदो कुटकी रागी ल, पेज पसिया बासी ल। धनहा खार मटासी ल, नागर बईला बियासी ल।। झन भूलाहू। झन भूलाहु ग, झन भुलाहु..... झन भूलाहु ग, झन भुलाहु..... बरछा टिकरा बारी ल, राल राल लगे कुशियारी ल। गोंदा फूल फुलवारी ल, अगहन के जाड़ मोटियारी ल।। झन भूलाहु... झन भूलाहु ग, झन भुलाहु..... मेला ठेला बताशा लाई ल, रिकिम रिकीम के खजाना खाई ल। किराया के साईकिल सिखाई ल, आऊ पहिने चप्पल हवाई ल।। झन भूलाहु..... झन भूलाहु ग, झन भुलाहु..... कोदो कुटकी रागी ल, पेज पसिया बासी ल। धनहा खार मटासी ल, नागर बईला बियासी ल।। झन भूलाहू। झन भूलाहु ग, झन भुलाहु..... झन भूलाहु ग, झन भुलाहु..... आषाढ के जबर गर्रा ल, जेठ नवतप्पन के भर्रा ल। पाईडिल म लगे छर्रा ल, खांसी के भूंजे हर्रा ल।। झन भूलाहु..... झन भूलाहु ग, झन भुलाहु..... जेठवनी के पारे पांव ल, मया पिरित के छांव ल। नानपन के बढ़ोय नांव ल, खेल म पदोय दांव ल।। झन भूलाहु.... झन भूलाहु ग, झन भुलाहु..... सोनहा भुइंया गांव के माटी ल, पैरपट्टी पांव के साटी ल। सियान मन के गोठ खांटी ल, बईध के गोली बाटी ...

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